Thursday, 27 November 2008

धमाकों का बदला रूप

मुंबई एक बार फ़िर दहल उठी है। अगर तुलनात्मक दृष्टीसे देखें तो इस धमाके का असर अधिक व्यापक होने वाला है। इस बार आतंकियों ने धमाका करके चुपचाप न भाग कर कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर लोगो को बंधक बना कर अपने बढ़ते दुस्साहस का परिचय दिया है। बंधकों मे विदेशियों के भी होने के कारण यह यह मसला और अधिक संवेदनशील हो गया है। इस धमाके से भारत के साथ विश्व समुदाय को भी चुनौती दी गई है। जिस तरह से बंधकों मे अमरीकीऔर ब्रिटिश को निशाना बनाया गया है उस मानसिकता पर भी ध्यान देना होगा।इन धमाकों ने भारत को एक बार फ़िर यह सोचने को मजबूर किया है की हमारे नागरिक कितने महफूज़ हैं.और बहार से आए लोगों को हम किस तरह की व्यवस्था दे पते हैं। ताज हमारे देश का एक brand रहा है ,per अगर हम वहां भय मुक्त माहौल नही दे सकते to कोई भी bahar से यहाँ नहीं आना chahega।ऐसी स्थिति me हमारी इकोनोमी पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

वैसे इन धमाकों के बाद जो एक सही बात सामने आई वह यह की अभी तक इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया गया,विपक्ष के नेता आडवानी का बयान साधा हुआ था और सकारात्मक राजनीती को दर्शाता था,अभी बहुत कुछ सामने आना बाकि है इंतज़ार करें.........

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